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स्वयंवर / दिनेश श्रीवास्तव

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<poem>
आज फिर पांचाली
स्वयंवर के लिए खड़ी है.
पर सारी सभा में
मत्स्य-वेध की क्षमता किसी में नहीं.

क्योंकि, कर्ण है दासपुत्र
और अर्जुन ने रेशम के कीड़ों की तरह
अपने चारों ओर
असम्पृक्तता का एक
ताना बाना बुन लिया है.

काश! अर्जुन यह समझ पता-
कि सारी सभा ने
अंतरात्मा का हवाला दे,
एक प्रस्ताव पास करके
उसे मार, उसके तानों-बानों की
साड़ी पहना, पांचाली को
विवाह की वेदी से जा कर
नगर-वधू बनाने की ठानी है.

</poem>
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