भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
शिवदीन निरंतर ध्यान लगा, गुरु गोविन्द के सम कौन है दाता ।
स्वर्ग गुरु बैकुंठ गुरु ब्रिजधाम बृज धाम गुरु, चहुँ ओर लखता ।
गुरु हैं गुरु मेरा प्रेम गुरु, शुभ नेम गुरु उर माहिं सुहाता ।
अनुराग गुरु वैराग्य गुरु बड़ भाग्य गुरु, गुरु पाठ पढ़ता ।
514
edits