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<poem>
यह तय था
कि मेरी संपदा हमेशा एक रहस्य ओढ़ कर रखेगी.
उस पर तितलियाँ मंडरायेंगी.
खरगोश अपनी करुणा से उसकी रखवाली करेंगे.
हिरन और बत्तखों की वो एक आरामगाह होगी.

प्रेम में संकोच के विचार को मैंने उस आनंद से ग्रहण किया
जैसे आजकल तुम कच्चे खजूर खाते हो.

वह मानवीय आपदा पर आई
एक चिंगारी की तरह
जो मुझे मेरे मिथकों से अलग कर जाता है.
ऐसे मैंने कई बार खुद को खुद से अलग होते देखा है.

रूमी कहते हैं
"मैं तुम्हारे कानों में कुछ शब्द कहूंगा
तुम 'हाँ' कहना
और खामोश रहना"

मैंने कभी नहीं सुने वो कहे गये शब्द.
लेकिन यह भी
कि निस्सीम उदासी के क्षणों में मैं खामोश रही.
उतनी खामोश कि मैं दो रहस्यों के मध्य एक पुल बन गई.

प्रेम के सबसे भावुक क्षणों में
जब हम सुख खोज रहे थे एक दूसरे में.
उस समय हम अपनी आवाज़ें खो रहे थे.
और बेच रहे थे
अपनी आत्माओं की परछाइयों पर चिपके तर्कों और यातनाओं के कागज़.

सब बस नाम का था
तुम
मैं
और
तितलियाँ बर्फ पर जम चुकी थीं.
</poem>
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