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तब कैसा होगा--- / नील्स फर्लिन

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तब कैसा होगा, प्रिये, मेरे अज़ीज,
जो दुःख एक दिन आ गया करीब,
जो ज़िन्दगी कर डाले
तुम्हें दारुण अपेक्षाओं के हवाले
और दे डाले वहन करने को अकथ विषाद पीड़ा टीस?

वैसे तुम्हें प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जरूरत नहीं,
मैं तो यूँ ही बैठा बस सोच रहा था यहीं.

और फिर तो मुख्य टुकड़ा ही
ऐसी बातों का विचित्र है
और कुछ बहुत
ज्यादा ही मौन सचित्र है.

इसलिए तुम्हें प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जरूरत नहीं.
मैं तो यूँ ही बैठा बस सोच रहा था यहीं.

'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''
</poem>
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