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हे कविता! / विल्हेम इकेलुन्द

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हे कविता!
वो हिम्मत नहीं करेगा
आने की तेरे निकट,
जिसकी आत्मा में निहित नहीं हैं
सपने,
सपने देखने की पर्याप्त उर्जा
सपने सजाने की हिम्मत -
शब्द!
शब्द का पुनर्जन्म.

है जिनके गर्जन में-: "यथार्थ अज्ञात है!"
हर उस बात के लिए जिसमें सांस लेती है आस्था,
वास्तविक जीवन का उत्साह;
हैं वो शब्दों को खड़खड़ाने वाले,
उनकी आत्मा ने कभी नहीं चखी
स्वप्न की मदिरा,
शब्द का रक्त.

'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''
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