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<poem>
परिस्थिति के श्रम का
पारितोषिक लेते जाओ
मनुज

तुम राजा थे
हो जाओगे सम्राट
पुनश्च युद्ध जीतकर

पर अभी के लिये
तुम पद्दच्युत हो
अपने सिंहासन से

प्रतिष्ठा, प्रेम, परिमय
एक बार का पुरस्कार हैं
छूटे जो, आजीवन तिरस्कार

तुम्हे समझना चाहिए कि तुम
समझे जाओगे समयनुसार

परखे जाओगे तदानुसार

क्या है अब तक के जीवन का
तादात्म्य, अरे धिक्कार !!

तुम विश्वास खो चुके हो
और हार चुके हो अधिकार
समय तुम्हे क्या देगा भी अब
क्षतिपूर्ति या प्रतिकार ??

उठो, चल दो
त्वरित गति दें तुम्हे,
तुम्हारे मन, मस्तिष्क, हृदय,तार-तार

साहस करो मनुज
भेदो चक्रव्यूह, यही सार, यही सार, यही सार !!
</poem>
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