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भोर होने वाली है / सुरेश चंद्रा

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मत रूसो अभी
सोच कर

तुम अंधेरा हो
मैं तमस हूँ
दुनिया काली है

माया, काया, है छल की छाया
बल प्रबल है, संबल रुदाली है

मत रूसो अभी
सोच कर

तुम्हारा सहजात
तुमसे ही सवाली है
तुम्हारी संवेदना से तुम में साहस
रिक्त है, आस समूची खाली है

सोचो तुम

आह्लाद अवसाद में
अंधियारे उजास में
तुम किस ओर रहो ??

मुझे रहने दो तमस
पर तुम भोर रहो

संसार विषम है
हर विषय की कसौटी पर
हर मनुज विष है
अमृत की शीर्ष चोटी पर

तुम निराश न रहो
रहने दो इर्द गिर्द दर्प, दम्भ, दंश सारे
केवल अंदर न पनपने दो
विक्षुब्धता अंश मात्र भी तुम्हारे

फेंक दो उतार कर हताश केंचुली
तुमने विवेचना की देह पर निर्रथक पाली है
सोचो तुम, मान जाओ, न रूसो तुम
रहने दो खुली दृष्टि में जो सांझ सी रक्तिम लाली है

तुम्हारे अंदर गहरे गहन घुप्प में
भोर होने वाली है, भोर होने वाली है ... ... .... !!

</poem>
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