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विस्फोट / जया पाठक श्रीनिवासन

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<poem>
वह सेकंड का दसवाँ हिस्सा रहा होगा
जो बिखरा है
चीथड़ों में
खून से लथपथ
भौचक्के चौराहे पर
पिछले कुछ घंटों से...

अब
कुछ दिन यहीं रहेगा
पुलिसिया छान बीन के दौरान
काले पड़े खून के धब्बों में
अखबारों की सुर्ख़ियों में
फिर
कुछ हफ्ते महीने
कराहेगा घायलों के साथ
हस्पतालों में पड़ा
सोचता हुआ
मैं पूरा खत्म क्यों नहीं हो गया
मृतकों के साथ....

लेकिन वह नहीं जानता
मृतकों के साथ न सही
उनके अपनों के साथ जियेगा
वह ता-उम्र
भीतरी किसी घाव की तरह
रिसता हुआ
दहशत के मारे
नहीं जायेगा
किसी भीड़ में
उत्सव - बाज़ार में
ट्रेन - बस में
पार्क में
स्कूल - हस्पताल में...

अब वह बस
खुद को सहेजे रखने की कोशिश में
यत्न करता रहेगा
भुला सके यह तथ्य
कि अपनी निर्धारित उम्र से
सैकड़ों गुना ज़्यादा जी चुका है वह...
</poem>
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