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13:01, 19 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
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[[Category:तुर्की भाषा]]
<poem>
धीरे-धीरे छोटे होते जा रहे हैं दिन,
आने वाला है बरसात का मौसम.
मेरा खुला दरवाज़ा इंतज़ार करता रहा तुम्हारा.
तुम्हें इतनी देर क्यों हो गई?
मेरी मेज पर धरी रह गई ब्रेड, नमक, और एक हरी मिर्च.
तुम्हारा इंतज़ार करते हुए
अकेला ही पीता रहा मैं
और रख लिया आधी शराब बचाकर तुम्हारे लिए.
तुम्हें इतनी देर क्यों हो गई?
मगर देखो, शहद से भरा हुआ फल,
पककर डाली पर लगा है अभी.
अगर और देर हो गई होती तुम्हें
अपने आप ही गिर गया होता वह जमीन पर.
'''अनुवाद : मनोज पटेल'''
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