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समय दुरूह है / सुरेश चंद्रा

13 bytes removed, 07:45, 20 अक्टूबर 2017
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कर्कश संगीत से ऊबरो
मत गुंजाओ गूँजाओ व्यर्थ नभ
बे-सर पैर की कविताओं में
किस ऊर्जा पर जीवित हो
किस निमित है तुम्हारा श्रम ???
एकाकी तुम में तुम्हारा सहजात
सचेत तुम
चेतते नहीं
... तुम प्रथम,
प्राथमिकता से द्वित्य हो
समय दुरूह है
और प्रयोजन के हरेक कृत्य में
... तुम वृत्त में,मात्र एक समूह का नृत्य हो !!.
</poem>
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