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{{KKRachna
|रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम किस परत में मिलोगे-
वह परत बताएगी
कि तुम कब थे
और कब तक थे
बताएगी
तुम्हारे साथ और क्या था
कब तक था
हाँ वही परत बताएगी
तुम कौन थे
कैसे थे
तुम्हारा नाम क्या था
कितना था
पर बस
इतना ही हो तुम केवल?
वह जो हृदय
धड़कता है तुममें
उसकी धड़क
वह जो धौंकनी सी चलती है
संघर्षरत तुममें
उसकी धधक
और वह जो कविता बुनते हो तुम
रोज़ रोज़
उसकी खनक
उसका क्या होगा
मिट्टी कैसे संजो कर रख सकेगी
इतना सब अपनी परतों में
और वह,
जो निकालेगा एक दिन तुम्हें
कुरेद कर उन परतों में से
उसकी अंगुलियाँ
कैसे समझ सकेंगी
इतना सब
वह तो टटोलेंगी
बस तुम्हारी अस्थियाँ
तुम्हारी चीज़ें-बर्तन-सामान कुछ
और कुछ महल मंदिर
क्या तुम्हारी शिनाख्त इनसे हो जाएगी
पूरी की पूरी?
</poem>
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|रचनाकार=जया पाठक श्रीनिवासन
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<poem>
तुम किस परत में मिलोगे-
वह परत बताएगी
कि तुम कब थे
और कब तक थे
बताएगी
तुम्हारे साथ और क्या था
कब तक था
हाँ वही परत बताएगी
तुम कौन थे
कैसे थे
तुम्हारा नाम क्या था
कितना था
पर बस
इतना ही हो तुम केवल?
वह जो हृदय
धड़कता है तुममें
उसकी धड़क
वह जो धौंकनी सी चलती है
संघर्षरत तुममें
उसकी धधक
और वह जो कविता बुनते हो तुम
रोज़ रोज़
उसकी खनक
उसका क्या होगा
मिट्टी कैसे संजो कर रख सकेगी
इतना सब अपनी परतों में
और वह,
जो निकालेगा एक दिन तुम्हें
कुरेद कर उन परतों में से
उसकी अंगुलियाँ
कैसे समझ सकेंगी
इतना सब
वह तो टटोलेंगी
बस तुम्हारी अस्थियाँ
तुम्हारी चीज़ें-बर्तन-सामान कुछ
और कुछ महल मंदिर
क्या तुम्हारी शिनाख्त इनसे हो जाएगी
पूरी की पूरी?
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