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<poem>
दिल्ली का अक्षरधाम
यमुना की देह पर जैसे
जड़ दिया गया हो
तंगहाली का ठप्पा बनाकर
आज वह ठप्पा
यमुना की लहरों से भीख मांगता सा
तंगहाल खड़ा है
यमुना हँस रही है
सुना तुमने???
</poem>
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