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'हम ऐसी सब किताबें क़ाबिले-ज़ब्ती समझते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'
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12:16, 21 अक्टूबर 2017
सितारों से कोई कह दे कि हम धरती के बाशिन्दे
तुम्हारी गर्दिशों<ref>चक्कर</ref> को सिर्फ़ ख़रमस्ती<ref>गदहे का लोटपोट
होना
</ref> समझते हैं।
अगर्चे इसमें रोटी-दाल की चिन्ता नहीं रहती
अनिल जनविजय
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