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10:44, 22 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं अथर्व हूँ / रामनरेश पाठक
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<poem>
एक नीली वियद् गंगा
कार्यों और कारणों
समस्यायों और परिणामों के
समतोल पर अवस्थित है
एक अनाम असंज्ञेय मनःस्थिति
कुरेद रही है घटनाएं
खंडित जिजीविषा के नाम पर
एक जिज्ञासा मुद्रित हो जाती है
समाचार पत्रों के शीर्ष पर और
करती रहती है भविष्यवाणियाँ
दो अरब चौंतीस करोड़ सत्तर लाख पचास हज़ार नौ सौ तीस वर्षों के निमित्त
</poem>
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