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बूढा पीपल : मैं / रामनरेश पाठक

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|संग्रह=मैं अथर्व हूँ / रामनरेश पाठक
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<poem>
मैंने जब जब झाँझ, मंजीरे, ढोल, डफों के साथ
मस्त हो फगुआ गाया
तब-तब यह बूढ़ा पीपल खांसा
(यह बूढ़ा पीपल जिस पर पिछले साल भरे भादों था वज्र गिरा
खल्वाट हुआ कठजीवा जला नहीं)

जब-जब तरसा, डफली, पंचबजना के साथ
कढ़ाई चैती, घांटो,
तब-तब यह बूढ़ा पीपल खांसा
(यह बूढ़ा पीपल जिसकी नंगी डालें काट ले गए
गाँव-गँवई के लोग महामारी जब धधकी)

मैंने जब-जब हल्दी लगने का-सा सपना देखा
कुमकुम, अबीर की थाल भरी
तब-तब यह बूढ़ा पीपल खांसा
(यह बूढ़ा पीपल
जिसके नीचे बैठ अनादि शिव पूजा पाते?)

</poem>
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