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रचना / रामनरेश पाठक

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|संग्रह=मैं अथर्व हूँ / रामनरेश पाठक
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<poem>
एक बहुत ही छोटी सीलन भरी कोठरी में
अचानक धूप का फ़ैल जाना
बहुत वर्षों से यूँ ही पड़ी डाली में
बौर का आ जाना
ऊसर खेत में
आंखुओं का सहसा उग आना
ओसर गाय का
अचानक रंभाने लगना
फिर किसी उन्मृदा का
अन्तःसत्त्वा हो जाना
चाँद का उग आना
गीत का फूटना या
झरनों की हँसी का फूटना
इस बात का पता है कि
कहीं न कहीं कोई चिंगारी है
अस्तित्व का प्रमाण देती हुई
कुछ लोग हैं जिन्हें
इस चिंगारी को नकारने की
आदत हुआ करती है, और वे
सूरज की ओर से आँखें फेरते होते हैं
और यह चिंगारी
अनगिनत चिंगारियों में
उगती है और ऊपर की ओर बढ़ जाती है
लपट बन जाती है--
सभ्यता की गति की लपट
फूल, फल, नृत्य-गीत, अन्न-धन से
कोई भौगोलिक आकार पूर्ण हो जाता है
इतिहास और दर्शन बन जाता है और
यह लपट शिखा बनती है
मनुष्य के ललाट पर चेतावनी
विकास का एक और चरण
पूरा हो सकता है इतिहास का

</poem>
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