भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विक्रमण / रामनरेश पाठक

No change in size, 17:51, 25 अक्टूबर 2017
एक सूखे समुद्र का विवृत्त स्तब्ध हाहाकार
लील रहा है
अनस्तित्व, ले लय पारद-तरलता और
पारदर्शी काले दर्पण को
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits