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प्रेम / उमेश भारती

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आय जलावै के जरूरत छै
यहीं अन्धकार केॅ सोखेॅ पारतै!
 
धूप निकललोॅ छै
 
धूप निकललोॅ छै।
मन एक अजीब एहसास सें भरी उठलौ छै।
तमन्ना छै कुछ करै के।
हौसला मजबूत छै।
अंधेरा केॅ कैक्टस के साथें बांधी दै के।
धूप निकललॉे छै।
मन एक एहसास सें भरी उठलोॅ छै।
 
संभावना के मौसम तरोताजा होय गेलोॅ छै
आकाश पहले सें साफ होय गेलोॅ छै।
उड़तोॅ होलोॅ पखेरू हँसतें दिखै छै।
धूप निकललोॅ छै।
मन एक एहसास सें भरी उठलोॅ छै।
तमन्ना छै कुछ करै के
हौसला मजबूत छै।
अंधेरा केॅ कैक्टस के साथें बांधी दै के।
धूप निकललोॅ छै।
मन के एहसास सें भरी उठलोॅ छै।
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