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Kavita Kosh से
सत्य लिखूँ हो निडर रचना बने अमर
नित्य प्रति गतिशील मेरी लेखनी रहे।।
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व्यर्थ न बजाऊँ ढोल, कविता है अनमोल
मेरी लेखनी की ऐसी तीव्र धार कीजिए।।
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