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Kavita Kosh से
निगल डाली है हवा तम्बाकू के धुएँ ने ।
और कमरा हो गया है जैसे क्रुचोनिख के 'नर्क' का अध्याय अध्याय ।याद करो --—
जब पहली बार
इन खिड़कियों के पीछे
आज बैठी हो
लोहे का-सा हृदय लिए ।लिए।
सम्भव है एक और दिन
फेंक दोगी बाहर गालियाँ ग़ालियाँ बकते हुए ।हुए।
धुआँ भरे कमरे में देर तक
भाग जाऊँगा
बाहर फेंक दूँगा शरीर ।शरीर।
पाशविक
निराशाओं का काटा हुआ
पागल हो जाऊँगा मैं ।मैं।
कोई नहीं इसकी ज़रूरत
मेरी प्रिये,
आओ कर दें क्षमा हम एक दूसरे को ।
यों विकल्प विकल्प नहीं कोई दूसरा --—
भारी वज़न-सा मेरा प्रेम
लटका रहेगा तुम पर
जिधर भी चाहो भागना ।भागना।
अन्तिम चीख़ तक निकालने दो मुझे
अपमानित शिकायतों की आग ।
बैल के लिए जुते रहना
वह भाग जाता है
और टाँगें पसार कर लेट जाता है पानी में ।में।तुम्हारे प्यार तुम्हारे प्यार के सिवा
कोई और समुद्र नहीं है मेरे लिए,
और तुम्हारा प्यार तुम्हारा प्यार है
कि रोने पर भी
नहीं देता थोड़ा-सा आराम ।
जब आराम करना चाहता है थका हाथी
शाही ठाठ से लेट जाता है वह गर्म रेत पर ।
कहीं नहीं है मेरे लिए धूप,
मालूम नहीं मुझे, तुम कहाँ हो और किसके साथ ?
यदि प्रेयसी ने इसी तरह दी होती यंत्रणा यन्त्रणा कवि कोवह उसक बजाय स्वीकार स्कावी करता ख्याति ख्याति और धन,
पर मेरे लिए
एक भी गूँज नहीं है मधुर
न ही पिऊँगा कोई ज़हर
और न ही दबा सकूँगा बन्दूक का घोड़ा ।
मेरे ऊपर
वश नहीं तेज़ से भी तेज़ खंजर का ।
कल तक भूल जाओगी तुम
मैंने ही तो किया था तुम्हारा राज्याभिषेकतुम्हारा राज़्याभिषेक,कि जला डाला प्यार प्यार से खिलता हुआ हृदय,और रिक्त रिक्त दिनों का यह उत्सवउत्सवपन्ने पन्ने बिखेर देता है मेरी पुस्तकों पुस्तकों केक्या क्या सूखे पन्ने
ठीक से साँस लेने न देंगे
मेरे शब्दों शब्दों को ?
और नहीं
इतना करने की इजाज़त तो दो
कि बिछा सकूँ मैं अपनी शेष बची कोमलता
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