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वीरता दिखाने के लिए भी
बलात्कार एक हथियार रहा है
मगर ये नई बात है
लगभग बिना बात
लिंग का हिंसक प्रदर्शन
लिंगधारी जब उठते बैठते हैं
तो भी ऐसा लगता है जैसे
खुजली जैसे बहानों के साथ भी
वे ऐसा व्यापक पैमाने पर करते हैं
वे लिंग पर इतरा रहे होते हैं।
आख़िर लिंग देखकर ही
माता-पिता थाली बजाने लगते हैं
ये ज़्यादा पुरानी बात नहीं है
जब फ्रायड महाशय
लिंग पर इतने मुग्ध हुए
कि वे एक पेचीदा संरचना को
समझ नहीं सके
लिंग के रूप पर मुग्ध
वे उसी तरह नाचने लगे
जैसे हमारी दाईयां नाचती हैं
परिमाण और ताक़त में गठजोड़ हो गया
ज़ाहिर है गुणवत्ता का मेल
सत्ताविहीन और वंचित से होना था
हमारे शास्त्र पुराण, महान धार्मिक कर्मकांडकर्मकाण्ड, मनोविज्ञान मिठाई औरनाते मिठाई औरनाते रिश्तों के योग से लिंग इस तरहस्थापित हुआ जैसे सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता आश्चर्य नहीं कि मां माँ की स्तुतियांस्तुतियाँ
कई बार लिंग के यशोगान की तरह सुनाई पड़ती हैं।
लिंग का हिंसक प्रदर्शन उस समय ज़रूरी हो जाता है जब लिंगधारी का प्रभामंडलप्रभामण्डल ध्वस्त हो रहा हो योनि, गर्भाशय, अंडाशयअण्डाशय, स्तन,दूध की ग्रन्थियों और विवेक सम्मत शरीर के साथ गुणात्मक रूप से भिन्न मनुष्य
जब नागरिक समाज में प्रवेश करता है
तो वह एक चुनौती है
लिंग की आकृति पर मुग्ध
विवेकहीन लिंगधारी सामूहिक रूप में अपना डगमगाता वर्चस्व जमाना चाहता है।
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