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भांग सा हर मन में उमंग घोल रहा।
बहारों में खिले सौदर्यं का घूँघट खोल रहा।
मधुमीत मदन सा प्यार की भाशा भाषा बोल रहा।
हिम-सिक्त शिखर पर चढ़ कभी ठंडी आहें भर रहा।
कभी पुश्पपुष्प-रज उड़ा तितलियों की साँसें गर्म कर रहा।
मदमस्त पवन आज गीत बन हर मन से झर रहा।
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