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ज़ेह्नो-दिल से शख़्स जो बेदार हैदरहक़ीक़त वो ही खुदमुख्तार खुदमुख़्तार है
आँख मूँदी आ गये तुम वो सामनेबीच अपने कब कोई दीवार है
रूप-रंग उसका, महक उसकी अदा
दर्द की शिद्दत के बढ़ने से पर लगाये तो कोई लादवा लाइलाज आज़ार है
जिसने भी 'दरवेश' हिम्मत हार दी
ज़िन्दगी उसके लिए दुश्वार है
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