भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
घिरी रहीं गोबर और कीचड़ के घेरों के बीच
उनकी सुबह जो चूल्हे की धूंआती धुआँती चाय से शुरू होके
दिन भर कमर तोड़ मेहनत से गुजरती हुई
शाम के धुंधलके में समाती गई
कैसे कह दूँ कि मेरे लिए नही हैं मायने
इन तीज त्यौहारों के
सखी सुनो,ये नही गईं कभी युनिवेरसिटीयुनिवरसिटी
इन्होंने नही पढ़े रिसर्च पेपर
ये कभी नही देखेंगीं होलीवुड हॉलीवुड मूवी
ये नही जान पायेंगी कि चाँद
उपग्रह है पृथ्वी का
इनके लिए तो ये मेले ठेले ये पर्व उपवास
आमोद प्रमोद की मधुर बांसुरी बाँसुरी सरीखे
इनकी होठों की सहज मुस्कान
जीने देतीे हैं इन्हें