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हरियाली तीज / आरती तिवारी

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घिरी रहीं गोबर और कीचड़ के घेरों के बीच
उनकी सुबह जो चूल्हे की धूंआती धुआँती चाय से शुरू होके
दिन भर कमर तोड़ मेहनत से गुजरती हुई
शाम के धुंधलके में समाती गई
कैसे कह दूँ कि मेरे लिए नही हैं मायने
इन तीज त्यौहारों के
सखी सुनो,ये नही गईं कभी युनिवेरसिटीयुनिवरसिटी
इन्होंने नही पढ़े रिसर्च पेपर
ये कभी नही देखेंगीं होलीवुड हॉलीवुड मूवी
ये नही जान पायेंगी कि चाँद
उपग्रह है पृथ्वी का
इनके लिए तो ये मेले ठेले ये पर्व उपवास
आमोद प्रमोद की मधुर बांसुरी बाँसुरी सरीखे
इनकी होठों की सहज मुस्कान
जीने देतीे हैं इन्हें
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