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कविता की तलाश / रामनरेश पाठक

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जब से आदमी ने मेरे हृदय को टुकड़े-टुकड़े किया और
उन टुकड़ों से अपने महल बनाए, सजाए
रंग-बिरंगे महल---लीलाओं, मंत्रणाओं, यात्राओं यंत्रणाओं के महल
तुरंत ढह जाने वाले पुल और
बह ढह जाने वाली सड़कें बनायीं
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