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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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<poem>
डूबा रहता है तुम्हारी देह का
तीन चौथाई हिस्सा
गर्व से गरजते
महासागर की कैद में
कहां आ पाया तुम्हारे हिस्से में
पूरा उजाला
समूचा रौशन करता तुमको एक साथ
जब एक गोलार्द्ध पर
पड़ता है प्रकाश
तुम्हारा दूसरा गोलार्द्ध
रहता अंधकार में।

आओ! मिलकर
बनाए एक सेतुबंध
मदमाते समुद्र की छाती पर
बन सकें रास्ते दूर-दराज
निर्वासन भोगती टापुओं की जमीन तक
और सांझ पड़े आया करें
दीया-बाती
जहां पसरी पड़ी है
अंधकार की हठीली सत्ता।
</poem>
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