भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
संदेश नही विज्ञापन के
जो बिना सुने
कट जाएँगेजाएँगे। 
आराध्य हमारा वह ही है
जिसके तुम नित गुण गाते हो
हम भी दो रोटी खाते हैं
तुम भी दो रो टी रोटी खाते हो
छू लेंगें शिखर न
भ्रम पालो हम विना बिना चढ़े
हट जाएँगे
प्रतिमान गढ़े हैं तुमने तो
हमने भी पर्वत काटे हैं
हम ट्यूव ट्यूब नहीं हैं डनलप के
जो प्रैशर से
फट जाएँगे
है सोच हमारी व्यवहारिकव्यावहारिकपरवाह न जंतर मंतर जन्तर मन्तर की
लोहू है गरम शिराओं का
उर्वरा भूमि है अंतर अन्तर की
हम सुआ नहीं है पिंजरे के
जो बोलोगे
उलझन से भरी पहेली का
इक सीधा -सादा -सा हल है
बेअसर हमारी बात नही
अपना भी ठोस धरातल है
हम बोल नहीं है नेता के
जो वादे से
नट जायेगेजाएँगे
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,142
edits