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Kavita Kosh से
लेकिन कहा एक लड़की ने
वो गढ्ढे बने हैं मेरे आँसुओं से
ये जो अमावस है धरती के हिस्से की
घना जंगल है ख़ामोशी का
ये जो चाँदनी बरसती है धरा के आँगन
जल जाते हैं उगे हुए जंगल
जब गूंजता गूँजता है समवेत क्रंदन चाँद के कानों में
एक ठहरी हुई नदी का
निकल आता है अकबका कर बाहर चाँद