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साल के लम्बे-लम्बे पेड़ों को
अपने में समेटने की कोशिश करती
बंदई बन्दई की अमावस्यागहन अँधेरा अन्धेरा और दीपकों का उत्सव भीगुलामी ग़ुलामी की साजिश साज़िश और मुक्ति की तैयारी भी, 
और पास ही एक छोटी झोपड़ी से
प्रतिपक्ष में खड़े दीये की मद्धिम रोशनी
साल के पेड़ों की पहचान बचा रही है
साथ ही उससे उभर रही है
झोपड़ी के अंदर अन्दर एक बूढ़े की पहचानµपहचान —
जिसके गले में एक गमछी टँगी है,
घुटनों तक सफेद सफ़ेद धोती लिपटी है
उसके हाथ में बाँस की चमकती हुई छड़ी है
वह डोडे वैद्य है,
वहाँ अन्य सात जनों की पहचान बना रही है
‘तीन युवक और चार युवतियाँ’
और उन तक मद्धिम आवाज आवाज़ मेंगाँव के किसी कोने से बंदई बन्दई का गीत पहुँचता है 
‘लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे
हमारे खेत, हमारी खेती के साथी
लियो रे हिर्रे, लियो रे हिर...रे
हिसिंगा से परे, डाह से परे’
 डोडे वैद्य के सामने गोबर लिपी जमीन ज़मीन पर
कुछ दोने हैं, दोनों में अरवा चावल हैं
धुअन है, हँड़िया हण्डिया हैवह संवाद सम्वाद की मुद्रा में कहता हैµहै — ‘गुड़ी की अंतिम अन्तिम परीक्षा का दिन है यह
फिर से आज कहूँगा कि
यह साँप पकड़ने या जकड़ने का
जादू-टोना नहीं है
और न ही हम ऐसे ढोंगी विद्या के समर्थक हैं
यह आयुर्वेद का संपूर्ण सम्पूर्ण ज्ञानध् 137गंध गन्ध और गीतों का समुच्चय है
मूल ‘होड़ो-पैथी’ है यह
जीवों के बाह्य और आंतरिकआन्तरिक
विशेषताओं और विसंगतियों का ज्ञान
और इसके सूत्राधार होते हैं मंतरमन्तर, ‘‘ये मंतर मन्तर केवल शब्द नहीं हैंकेवल ध्वनि मात्रा मात्र नहीं हैं
और न ही यह मेरी रचना है
जिसे मैं अपनी अमरता के लिए
तुम्हारी स्मृतियों का स्तंभ स्तम्भ खड़ा कर रहा हूँयह किसी ओझा का झूठ या, अन्धविश्वास नहीं है
यह उन सबका सार है
निचोड़ है, रस है
जो हमारे आसपास के जीवन में
दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले मौजूद मौज़ूद है, 
इस धरती में जीवन के तन्तु
एक-दूसरे प्राणियों से ही बुने हैं
प्रकृति में कोई भी किसी के बिना अधूरा है
उसकी पहचान अधूरी है
संपूर्ण सम्पूर्ण जीवन में हम अपने सहजीवियों सेप्रत्यक्ष संवाद सम्वाद नहीं कर पाते हैंयह मंतर मन्तर उनसे संवाद सम्वाद का माध्यम हैयह मंतर मन्तर है, अलिखित, अ-रूढ़ और स्व-अभिव्यक्ति’’जोनाµजोना (शिष्या)
‘‘एक तरफ हम यहाँ
जीवन बचाने के लिए परीक्षा में उतरे हैं
अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए
कहा जाता है
आज चुड़ैलें नाचती हैं अँधेरी अन्धेरी रात में
डायन-सभा होती है
जो अपनी देह में जलते हुए दिये को लेकर नृत्य करती हैं
आदमखोर आदमख़ोर कहीं अपने दाँत तेज तेज़ कर रहे होंगे’’138 ध्सेः को (शिष्य)µ‘‘अगर हमारे मंतर मन्तर की शक्ति है तोउनके मंतर मन्तर की भी शक्ति होगी ही
तो क्या यह शक्तियों की टकराहट होगी...?
क्या यह द्वंद्व द्वन्द्व है
अपनी-अपनी शक्ति स्थापना का...?’’
 डोडे वैद्यµवैद्य — ‘‘एक तरफ तरफ़ हम हैंजो जीवन बचाने के लिए खुद ख़ुद को समर्पित कर रहे हैंऔर दूसरी तरफ तरफ़ अमानवीयता की भी तैयारी हैगौर ग़ौर करने की बात है कि
हर शक्ति मानवीयता के नाम पर ही उभरती है,
 
हमारी तैयारी शक्ति स्थापित करने की नहीं है
बल्कि अमानवीय शक्तियों को
जीवन के केन्द्र में आने से रोकने की है’’
 जितनी (शिष्या)µ‘‘तो फिर यह द्वंद्व द्वन्द्व है, लड़ाई है
लेकिन हमें तो सबकी सेवा के लिए तत्पर होना है
हमारे लिए क्या शत्राुशत्रु, क्या दोस्तसब मरीज मरीज़ हैं , दुखी जन हैं?’’ डोडे वैद्यµवैद्य —
‘‘हाँ, हमें सबकी सेवा करनी है
हम वैद्य होंगे, रोग निवारक होंगे,
हमारा कोई शत्राु शत्रु नहीं हैहमारा शत्राु सिर्फ शत्रु सिर्फ़ रोग है, बीमारी है
और यह रोग विचार भी है, सोच भी है
एक व्यवस्था भी रोग होता होती है
हमें सबसे पहले रोग की पहचान करनी होगी’’
 बिरसी (शिष्या)µ
‘‘रोगी कौन है
रोग कैसे होता है
चुड़ैल चुड़ैलें रोग फैलाती हैंया डायन डायनें रोग फैलाती हैंध् 139हमें इन बातों में पर विश्वास नहीं होता है
यह ओझाओं का ढोंग है
अपने लिए मुर्गा और बकरा जुगाड़ने का धन्धा है
इनके मंतर मन्तर और झाड़-फूँक कष्टदायी होते हैं’’ डोडे वैद्य-
‘‘हाँ, बिरसी!
चुड़ैल चुड़ैलें और डायन डायनें लोगों की कल्पना हैं
यह भी सत्ता के वर्चस्व का साधन है
उत्पीड़न का कारक
संपत्ति सम्पत्ति लालसा का प्रतिबिंबप्रतिबिम्ब
यह संकेत है
आदिवासी दुनिया में
सत्ताओं के उदय का
पुरखों के गणतंत्रा गणतन्त्र के खिलाफ ख़िलाफ़ प्रभुता का, 
यह संकेत है
आमानवीय अमानवीय शक्तियों के गठबंधन गठबन्धन का,
चानर-बानर के शुक्राणु
उलट्बग्घा के शुक्राणु यहीं से जन्म लेते हैं
यहीं अभिक्रिया होती है आदमी और बाघ की
जो सबसे ज्यादा ज़्यादा भयावह और अप्राकृतिक होता है’’बिरसीµबिरसी —
‘‘हाँ, मैंने सपने में देखा था
रीडा आबा मुझे उसी तरह के बाघ की बात बता रहे थे
उन्होंने ही कहा था
आदमी ही बाघ बनते हैं’’
 डोडे वैद्यµवैद्य —
‘‘हाँ, बिरसी
प्राकृतिक रोग का इलाज सहज है
मनुष्य निर्मित रोग का इलाज कठिन है
उसका रोग
उसकी व्यवस्था के रूप में प्रतिबिंबित प्रतिबिम्बित होता है,
हमारे अन्दर रोग
140 ध्
केवल प्राकृतिक नहीं है
कई बार हमारे मुंडाओंमुण्डाओं, मानकियों और
पहान जैसे पदधारियों ने भी
अप्राकृत बाघों के साथ अभिक्रिया कर
मदरा मुण्डा और हीरा राजा के गणतंत्रा गणतन्त्र के विरुद्ध आचरण किया हैऔर एक ही गण के अंदरअन्दर
एक मुण्डा के यहाँ अलग व्यवस्था दिख जाती है
दूसरे मुण्डा के यहाँ अलग
हमने उसे एक रोग के रूप में चिद्दित चिह्नित किया है’’जोनाµजोना —
‘‘रिसा मुण्डा और मदरा मुण्डा के
गणतंत्रा गणतन्त्र के विरुद्ध
हमारे ही परवर्ती कुछ मुण्डाओं ने भी आचरण किया है
यानी, गणतंत्रा गणतन्त्र के विरुद्ध आचरण भी बाघपन है...?
बीमारी है, रोग है?’’
डोडेµडोडे —
‘‘हाँ, लेकिन रोग या रोगी की पहचान
केवल उसके बाहरी लक्षण से ही
संभव सम्भव नहीं हैगणतंत्रा गणतन्त्र यदि एक आवरण मात्रा मात्र हैऔर उसके अंदर उसके अन्दर उसकी अस्थि-मज्जों मज्जाओं का अभाव हैतो वह धोखा है , ढोंग हैहमारे पुरखों ने अपने अपनी अस्थि-मज्जों मज्जाओं से उसकी संरचना की है
लेकिन हमारे ही मुण्डाओं ने
हमारे ही प्रतिनिधियों ने
उसको खोखला कर
आवरण मात्रा मात्र रहने दिया है, हमारे गणतन्त्रा गणतन्त्र के आधार -गीत हैंगीत ही मंतर मन्तर है
रोग निवारक प्रमुख औषधि हैं
गीतों का Ðास गणतंत्रा ह्रास गणतन्त्र का Ðास ह्रास हैगीत रहित गणतन्त्रा गणतन्त्र प्रभुओं की व्यवस्था हैप्रभुताओं के खिलाफख़िलाफ़मैं तुम्हें मंतर मन्तर दूँगा, गीत सौंपूँगा
वही होगा रोगों से मुक्ति का आधार,
ध् 141यह गीत, यह मंतरमन्तर
रोग के कारण से
संवाद सम्वाद का एक माध्यम है
ठीक वैसे ही जैसे
पेड़ से गिरे मरीज मरीज़ को
जड़ी-बूटी देने से पहले
उस पेड़ से संवाद सम्वाद स्थापित करते हैं कि
वह हमें क्षमा करे हमारी अमर्यादा के लिए
 यह मंतर मन्तर गीत है, स्वछंद स्वछन्द है
दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले प्रकृति का
संवाद सम्वाद है अपने सभी सहजीवियों से’’ 
सहमति में सात जनों के सिर
अपनी-अपनी स्वाभाविक मुद्राओं में हिले
वे अपनी मुद्राओं को स्वर देते हैंµहैं — ‘हाँ, हमें संवाद सम्वाद के
सभी तरीकों से अवगत होना है
संवाद सम्वाद के बिना
गीतों के बिना
हम कोई ठोस व्यवस्था नहीं बना सकते’
एक गहन शांति के बाद
डोडे वैद्य ने फिर कहाµकहा —
‘‘सुनो!
आज बंदई बन्दई की अमावस्या हैµहै — ‘गुलामी ‘ग़ुलामी की साजिशसाज़िश
और मुक्ति की योजना भी है’
आज का त्योहार
मवेशियों के लिए है
यह उनकी सेवा का अवसर है
उनसे संवाद सम्वाद को प्रगाढ़ करना है’’ 
सात जनों में से
एक की प्रश्नवाचक मुद्रा उभरीµउभरी — ‘‘यह संवादसम्वाद
कैसे प्रगाढ़ होता है?’’
142 ध्डोडेµडोडे — ‘‘संवाद ‘‘सम्वाद की प्रक्रिया होती हैउस प्रक्रिया से गुजरे गुज़रे बिना
हमें अजनबीपन का बोध होता है
 
हमने अपने सहजीवियों के
सम्मान में उपवास किया
समझ सकें हमारी भावना
और उनकी भावना में
उतर आये आए अस्पर्श नमी
हमने उन्हें नहलाया
कुजरी तेल से तेलाया
उन्हें धन्यवाद कहा कि
उन्होंने हर बार की भाँति
इस बार भी हमारी खेती संपन्न सम्पन्न की
वे हमारे बच्चों की आँखों की हँसी हैं
हमारे पुरखों की शांति शान्ति के कारकहमने उन्हें हँड़ियाहण्डिया, सिंदूर सिन्दूर अर्पित किया
हमने उनके पुरखों को स्मरण किया कि
उन्होंने ही हमें घने जंगलों के बीच
जीवन का सहारा दिया
वे हमारे गणचिह्न हैं, हमारे रक्षक,
हमने स्मरण किया ‘टूंटा ‘टूण्टा साईल काचा बियर’ को
कि उन्होंने आदिम दिनों में
हमारे जीवन का जोखिम जोख़िम भरा रास्ता साफ’ साफ़’ किया 
फिर पूरे गाँव के सहजीवियों को
अखड़ा में एकत्रित किया
और उनके साथ मांदरमान्दर, नगाड़े, गीत साझा किएµकिए —
‘हिर रे, हिर रे, तोतो नोनो
हिर रे, हिर रे, तोतो नोनो
आज तुम्हारी सेवा करेंगे
तुम्हारी इच्छाशक्ति से ही
तुम्हारे तुम्हारी लगन से ही
इस जीवन को हमने सँवारा
इस देश को हमने सोना बनाया
ध् 143
हिर रे, हिर रे, घुर रे, हुर्र रे
छगरी रे, गारू रे, काड़ा रे’
 (सभी शिष्य सामूहिक स्वर देते हैं।हैं) फिर और एक मुद्रा प्रश्नवाचक हुईµहुई — ‘‘गीत क्यों जरूरी ज़रूरी होते हैं?’’बिरसीµ‘‘संवाद बिरसी — ‘‘सम्वाद और सम्मान के लिए’’डोडेµ‘‘संवाद डोडे — ‘‘सम्वाद और सम्मान
सहजीविता के लिए अनिवार्य शर्त है
जंगलों से, नदियों से
दृश्य-अदृश्य, बोले-अबोले प्रकृति से
विश्व कल्याण के लिए,
संपूर्ण सम्पूर्ण जीवन की लय और
श्रम के लय की एका से ही
सहजीविता संभव सम्भव होती है
श्रम का शोषण
इस लय को तोड़ता है
इसी लय को गूँथते हैं गीत
गीत ही हमारे मंतर मन्तर हैं
यह कोई आदेश नहीं है
कोई फतवा फ़तवा नहीं हैस्त्राीस्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े
इसके सब समान अधिकारी हैं
वंचित जनों का प्राण है यह’’
जितनीµजितनी —
‘‘गीत हमारे रोग निवारण की
औषधि है
इस औषधि की जड़ अखड़ा है
अवसाद की जड़ी, अकेलेपन की बूटी...?’’
144 ध्डोडेµडोडे —
‘‘हाँ, यह रोग निवारण की औषधि है
इस औषधि की जड़ केवल अखड़ा नहीं रही है
हमारा संपूर्ण गणतंत्रा सम्पूर्ण गणतन्त्र इसकी जड़ी है
गितिः ओड़ाः, धुमकुड़िया, घोटुल
पड़हा, पंचायत, सरना, मदाईत,
श्रम के शोषण का प्रतिपक्ष
और सत्ताओं के लिए कड़वा घूँट
जबजब जब-जब गीत टूटे हैं
सत्ताओं के विषाणु पनपे हैं।’’
 रुसू (शिष्य)µ
‘यह हमारी प्रकृति में ही मौजूद है
उसी में हैं इसके तंतु’तन्तु’डोडेµडोडे —
‘‘हाँ, मूल तो प्रकृति ही है
वर्तमान दंभी दम्भी विज्ञान का उत्स भी
सभी उत्पादित वस्तुओं का सोता भी,
आह...लेकिन उसी प्रकृति का आज इतना अपमान है!
उसकी रक्षा हमारा कर्त्तव्य
यही है आदिवासियत का आधार
और यही आधार है संपूर्ण सम्पूर्ण सृष्टि के जीवन का,का।
</poem>
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