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{{KKRachna
|रचनाकार=राजूरंजन प्रसाद
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<poem>
कुछ लोग हैं जो
शब्दों को तोलते हैं
फिर मुह खोलते हैं
सामने बैठे दोस्त से
पूछा मैंने-
कुछ सुना
कहा उसने
जी, समझा
बोलना और सुनना
समय का रिवाज नहीं रहा शायद
</poem>
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