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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
राज रै साथै रया वै मौज मारी माल चरग्या।
चापलूसी मोकळी कर काम वांरा खूब सरग्या।
सांच रा पक्का रुखाळा आज भी जोयां मिलै है।
कूड़ मिनखां चाल चाली यार भोळा जीव मरग्या।
काठ री हांडी चढै नीं हर बार म्हारा बेलिया।
पण थोथ च्यारूं कूंट जद सींत में सौ बार तरग्या।
काळ री करड़ी निजर पाणी मिलै नीं फूस-पाती।
कागदां में गांव रा जोहड़ा तळाब च्यार भरग्या।
कुबद अर रोळौ घणौ है भै दिखावट बेकळी सी।
मिनख लूंठा बोलबाला सांतरा वै काम करग्या।
आंख आगै सैं-दुपारी लूटमारी देखल्यां पण।
सांचली बातां ‘मुसाफिर’ बोलणै सूं लोग डरग्या।
</poem>
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|रचनाकार=राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
राज रै साथै रया वै मौज मारी माल चरग्या।
चापलूसी मोकळी कर काम वांरा खूब सरग्या।
सांच रा पक्का रुखाळा आज भी जोयां मिलै है।
कूड़ मिनखां चाल चाली यार भोळा जीव मरग्या।
काठ री हांडी चढै नीं हर बार म्हारा बेलिया।
पण थोथ च्यारूं कूंट जद सींत में सौ बार तरग्या।
काळ री करड़ी निजर पाणी मिलै नीं फूस-पाती।
कागदां में गांव रा जोहड़ा तळाब च्यार भरग्या।
कुबद अर रोळौ घणौ है भै दिखावट बेकळी सी।
मिनख लूंठा बोलबाला सांतरा वै काम करग्या।
आंख आगै सैं-दुपारी लूटमारी देखल्यां पण।
सांचली बातां ‘मुसाफिर’ बोलणै सूं लोग डरग्या।
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