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|रचनाकार=राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'
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<poem>
सूरजी नीं तौ उगै
अर नीं बिसूंजै
नीं तौ चालै
अर नीं थमै
जुगां-जुगां सूं
वौ तौ लगौलग
करड़ी मींट सूं देखै
अंधार रै हेताळुवां नै।
जदई सईकां सूं
नीं थरपीज सक्यौ
आखी स्रस्टि
अंधार रौ राज।

</poem>
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