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{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
धरती जब तृप्त होती हैं
रंध्र-रंध्र से उसके
फूटती है असीसें
बनकर हरी दूब।
षिषुओं के लिए
झर-झर आता
स्तनों से अमृत।
</poem>
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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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धरती जब तृप्त होती हैं
रंध्र-रंध्र से उसके
फूटती है असीसें
बनकर हरी दूब।
षिषुओं के लिए
झर-झर आता
स्तनों से अमृत।
</poem>