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|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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<poem>
उत्तर की ओर जाने वाला आदमी
कभी नहीं पहुंच पाता
ठीक-ठीक उत्तर पर
कभी नहीं चुकती दिशा
खत्म नहीं होता उत्तर कभी धरती पर
चलते-चलते जबकि आ ही चुका होता है
वह दक्षिण-बिंदु
जहां से चले थे इस गोल धरती पर।
शेष फिर भी बचा रहा उत्तर
... उत्तरोत्तर उत्तर।
और इस तरह सारे अंत
अंतहीन होते हैं।
</poem>
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