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{{KKRachna
|रचनाकार=कैलाश पण्डा
|अनुवादक=
|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम्हें तिरस्कृत कर
अपना लक्ष्य
पूर्ण नहीं कर पाऊंगा
मेरे शालीनता पूर्वक
व्यवहार को गाली मत दो
परोपकरमयी दृष्टि को
कमजोरी मत मानो
मन की पीड़ा
प्रेम का परिचायक है
जिसे स्वाभिमान कहते हो
वह विकार है
ह्रदय में दीप जल रहा है
शुद्ध ऑक्सीजन का
प्रवेश होने दो
अंतः के कार्बन को
बाहर कर
धैर्य से श्रास को
केन्द्रित कर
कहीं खो जाओ
शून्य बन
सूर्य बन जाओ
प्रकाश में स्वर्ग है
जल जलाकर हो जाओ।
</poem>
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|रचनाकार=कैलाश पण्डा
|अनुवादक=
|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
}}
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<poem>
तुम्हें तिरस्कृत कर
अपना लक्ष्य
पूर्ण नहीं कर पाऊंगा
मेरे शालीनता पूर्वक
व्यवहार को गाली मत दो
परोपकरमयी दृष्टि को
कमजोरी मत मानो
मन की पीड़ा
प्रेम का परिचायक है
जिसे स्वाभिमान कहते हो
वह विकार है
ह्रदय में दीप जल रहा है
शुद्ध ऑक्सीजन का
प्रवेश होने दो
अंतः के कार्बन को
बाहर कर
धैर्य से श्रास को
केन्द्रित कर
कहीं खो जाओ
शून्य बन
सूर्य बन जाओ
प्रकाश में स्वर्ग है
जल जलाकर हो जाओ।
</poem>