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{{KKRachna
|रचनाकार=कैलाश पण्डा
|अनुवादक=
|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
}}
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<poem>
वह बोला नहीं
मैनें भी मौन साधा
वह शून्यवत्
किन्तु चेतन
मैं जाग्रत
सम्पूर्ण इन्द्रियों को बाधा
केवल आंखों से
आखों में
बहा दिया
उसने ग्रहण किया
समर्पण से
और प्रवचन हो गया।
</poem>
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|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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वह बोला नहीं
मैनें भी मौन साधा
वह शून्यवत्
किन्तु चेतन
मैं जाग्रत
सम्पूर्ण इन्द्रियों को बाधा
केवल आंखों से
आखों में
बहा दिया
उसने ग्रहण किया
समर्पण से
और प्रवचन हो गया।
</poem>