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फैलाओ / कैलाश पण्डा

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|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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<poem>
उसका अन्तर्मन
आंखों के माध्यम से
अपनी भावनाओं को
प्रकट करता
अरू, मै उसकी आत्मा का
साक्षात्कार करता
रहन-सहन/भाषा-बोली
आचार विचार-व्यवहार
गुण-अवगुण
उन्नत अवगत
वह व्यक्त करता
विचार संस्कारिद के
आदान-प्रदान का मार्ग
यही श्रेष्ठ है
पहले अपनी विशिष्ट चेतना से युक्त
सुषुमा को जगाओ
ध्यान के मार्ग से गुजकर
सहस्त्रों सूर्य के प्रकाश की भांति
श्रेततंतुओ से ऊर्ध्वगमन कर
कपाल में ले जाओ
धीरे-धीरे सिच्चत कर
चक्षु के मध्य में रोककर
ह्रदय तल तक फैलाओ।
</poem>
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