भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निराधार / कैलाश पण्डा

1,105 bytes added, 13:59, 27 दिसम्बर 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश पण्डा |अनुवादक= |संग्रह=स्प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कैलाश पण्डा
|अनुवादक=
|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
धूलि तुम्हारा दुःसाहस
निराधार !
पराग तो उड़ेगा
फलेगा जग में
सुगंधित कर देगा
वायु को नभ से
रजनी तुम्हारा सामर्थ्य
केवल है भूल
सूरज तो उगेगा नभ से
कर देगा
पृथ्वी को स्वर्णिम
उसकी आभा से
होगा उजियाला
भोर का उजास
मिटा देगा
अन्तर के कलुष को
अरू भर देगा उत्साह
ग्वाला उठेगा
दुहेगा गौ को
तब बछड़ा उत्कण्ठा से
भर जायेगा
धूलि तुम्हारा दुःसाहस
निराधार।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits