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|रचनाकार=मनोज चारण 'कुमार'
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<poem>
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे,
एक दिन दुनियाँ सूं काया चली जाणी रे,
काम करयोडा थारा बणसी निसाणी,
झूठ-कपट की सारी झूठी कहाणी रे।१।
आम तो तूँ बोया कोनी, कियाँ फलैला,
हिलमिल चाल्यो कोनी, कियाँ चलैला,
थारी मदद तो भाईड़ा कुण जी करैला,
खेती करयोडी भाईड़ा खुद ही कमाणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।२।
सोच समझ मन काई करैला,
खाडा जो खोद्या खुद बै, तू ही भरैला,
तेरा करयोडा करजा तू ही चुकैला,
करयोडी कमाई थारी खुद नै ई खाणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।३।
घ्यारी तो मचसी भारी, जीव तडपैला,
चांटा-चूँटी लगसी थारे, काया तिड़कैला,
जमराजा आसी थारा प्राण हरैला,
जीव जलम की जीवड़ा ईती कहाणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।४।
काळ खड़यो है बैरी उभो सिराणै,
पार पडैली कैया आ कुण जाणै,
करम करयोड़ा लेखा कुण पिछाणै,
काया झुंपड़ी तो एक दिन गळ जाणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।५।
सुमिर-सुमिर मनडा उमा कै पति नै,
मन मैं तू भजले थारे रमा कै पति नै,
याद तूँ करले थारी करम गति नै,
द्वार तो सगला खुलसी मुगति हो ज्याणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।६।
नया लोग आसी नयी कथना करैला,
नुआ छन्द नुई रागां रचना रचैला,
भाव तो पुराणा नुआ बंद रचैला,
चारण कही है जकी बात है पुराणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।७।
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च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे,
एक दिन दुनियाँ सूं काया चली जाणी रे,
काम करयोडा थारा बणसी निसाणी,
झूठ-कपट की सारी झूठी कहाणी रे।१।
आम तो तूँ बोया कोनी, कियाँ फलैला,
हिलमिल चाल्यो कोनी, कियाँ चलैला,
थारी मदद तो भाईड़ा कुण जी करैला,
खेती करयोडी भाईड़ा खुद ही कमाणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।२।
सोच समझ मन काई करैला,
खाडा जो खोद्या खुद बै, तू ही भरैला,
तेरा करयोडा करजा तू ही चुकैला,
करयोडी कमाई थारी खुद नै ई खाणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।३।
घ्यारी तो मचसी भारी, जीव तडपैला,
चांटा-चूँटी लगसी थारे, काया तिड़कैला,
जमराजा आसी थारा प्राण हरैला,
जीव जलम की जीवड़ा ईती कहाणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।४।
काळ खड़यो है बैरी उभो सिराणै,
पार पडैली कैया आ कुण जाणै,
करम करयोड़ा लेखा कुण पिछाणै,
काया झुंपड़ी तो एक दिन गळ जाणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।५।
सुमिर-सुमिर मनडा उमा कै पति नै,
मन मैं तू भजले थारे रमा कै पति नै,
याद तूँ करले थारी करम गति नै,
द्वार तो सगला खुलसी मुगति हो ज्याणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।६।
नया लोग आसी नयी कथना करैला,
नुआ छन्द नुई रागां रचना रचैला,
भाव तो पुराणा नुआ बंद रचैला,
चारण कही है जकी बात है पुराणी रे,
च्यार दिनां की मिली आ जिंदगाणी रे।७।
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