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साँवळी सी नार / मनोज चारण 'कुमार'

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<poem>
सांवळी सी नार बा गजब करगी।
गुआङ बैठ्या बूढ़ीयां रो मन हरगी।
रावणहत्थै री रागणी हियै मैं गडगी।
गोरङी गिंवारण देखो चित्त चढ़गी।।

सांवळी सुरत पै सुरंगो धारयो भेस।
काळा-काळा भंवराळा नागणगारा केश।
लांबै केशां वाळी चोटी नागण डसगी।
सांवळी सी नार बा गजब करगी।।

चोर लेवै मनङो रतनारा ज्यांरा नैण।
देखले निजर भर घायल ह्वैजा सैण।
नैणा री कटारी बैरण काळजै मैं गडगी।
सांवळी सी नार बा गजब करगी।।

टाबरिया उडीकै उणनै कद आवै बै चाल।
ले'र आवै रमतिया बा छाबङियै मैं घाल।
टाबरियां री साथण कठै अब गमगी।
सांवळी सी नार गजब करगी।।
</poem>
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