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11:15, 3 जनवरी 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार मुकुल
|संग्रह=सभ्यता और जीवन / कुमार मुकुल
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avita}}
<poem>
हेरा था
स्नेहमयी आंखों से
पछाड़ों को थामती
उर्मित दृष्टिकोरों से
देती रवानी
रक्त-धार को नयी
मुखर मौन से
मम अंतर मथ
रंजना की
सुस्मित मधुपोरों से
रंजक मन मुकुल
मुकुलित कर
अनंत की सीमा में
रेखा से बांध
दिया मुक्ति का वर।
</poem>