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|रचनाकार=कुमार सौरभ
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}}
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मुझे चाहो तो
उस कोने को चाहो
जहाँ सन्नाटा है
घुप्प अंधेरा है !
वे नजरें किसी और की होंगी
जो सराहेंगी मुझे
साक्षी रख सूरज के सातों घोड़े
तुमने न देखा तो क्या देखा
मुझमें अंतहीन सुरंग!
मेरे साथ चलती अंधेरी खाइयाँ!
मुझे दुलारो तो
उन हिस्सों को दुलारो
जो जले हुए हैं
चूमो तो उन होठों को चूमो
जो फटे हुए हैं !!
</poem>
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मुझे चाहो तो
उस कोने को चाहो
जहाँ सन्नाटा है
घुप्प अंधेरा है !
वे नजरें किसी और की होंगी
जो सराहेंगी मुझे
साक्षी रख सूरज के सातों घोड़े
तुमने न देखा तो क्या देखा
मुझमें अंतहीन सुरंग!
मेरे साथ चलती अंधेरी खाइयाँ!
मुझे दुलारो तो
उन हिस्सों को दुलारो
जो जले हुए हैं
चूमो तो उन होठों को चूमो
जो फटे हुए हैं !!
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