भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
New page: शाम को आने का वादा, इस दिलको तसल्ली दे गया, आनेका कह कर तुमने, हमे सुकूँ कि...
शाम को आने का वादा,
इस दिलको तसल्ली दे
गया,
आनेका कह कर तुमने,
हमे सुकूँ कितना दिया
!
अमलतास के पीले झूमर
भर गये, आँगन हमारा,
साँझ की दीप बाती
जली,
रोशन हो गया हर
किनारा !
पाँव पडे जब दहलीज पर
-
हवाने आकर, हमको
सँवारा,
आँगन से, बगिया तक,
पात पात, मुस्कुराया !
बिँदीया को सजाती
उँगलियोँने,
काजल नयनोँमेँ
बिखेरा,
इत्रकी शीशीसे फिर
ले बूँद,
हमने उन्हे, गले से
लगाया !
घरसे भीतर जाने का
रस्ता,
लाँघ कर, जो भी है,
जाता ,
या आता ! खडी रहती जो,
हमेशा, वो दहलीज है!
इस दिलको तसल्ली दे
गया,
आनेका कह कर तुमने,
हमे सुकूँ कितना दिया
!
अमलतास के पीले झूमर
भर गये, आँगन हमारा,
साँझ की दीप बाती
जली,
रोशन हो गया हर
किनारा !
पाँव पडे जब दहलीज पर
-
हवाने आकर, हमको
सँवारा,
आँगन से, बगिया तक,
पात पात, मुस्कुराया !
बिँदीया को सजाती
उँगलियोँने,
काजल नयनोँमेँ
बिखेरा,
इत्रकी शीशीसे फिर
ले बूँद,
हमने उन्हे, गले से
लगाया !
घरसे भीतर जाने का
रस्ता,
लाँघ कर, जो भी है,
जाता ,
या आता ! खडी रहती जो,
हमेशा, वो दहलीज है!
Anonymous user