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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=लावण्या शाह}} शाम को आने का वादा,<br>इस दिलको दिल को तसल्ली दे<br>गया,<br>आनेका आने का कह कर तुमने,<br>हमे सुकूँ कितना दिया!<br><br>
अमलतास के पीले झूमर<br>भर गये, आँगन हमारा,<br>साँझ की दीप बाती<br>जली,<br>रोशन हो गया हर<br>किनारा !<br><br>
पाँव पडे जब दहलीज पर-<br>हवाने हवा ने आकर, हमको<br>सँवारा,<br>आँगन से, बगिया तक,<br>पात पात, मुस्कुराया !<br><br>
बिँदीया को सजाती<br>उँगलियोँनेउँगलियोँ ने,<br>काजल नयनोँमेँनयनोँ मेँ<br>बिखेरा,<br>इत्रकी शीशीसे इत्र की शीशी से फिर<br>ले बूँद,<br>हमने हम ने उन्हे, गले से<br>लगाया !<br><br>
घरसे घर से भीतर जाने का<br>रस्ता,<br>लाँघ कर, जो भी है,<br>जाता ,<br>या आता ! खडी रहती जो,<br>
हमेशा, वो दहलीज है!