व्यथा - गीत : {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=लावण्या शाह}} --तुम्हारी याद आसपास आस-पास फैली रात्रि से उभरती हुई --<br>नदिया का आक्रँद, <br>जिद्दी बहाव लिये, <br>सागर मेँ समाता हुआबँदरगाह हुआ<br>बँदरगाह पर सूने पडे गोदाम <br>ज्यूँ प्रभात के धुँधलके मेँ <br>-और यह प्रस्थान - <br>बेला सम्मुख, <br>ओ छोड कर जाने वाले !<br><br> भीगे फूलोँके मुखसे फूलोँ के मुख से बरसता जल, <br>मेरी हृदय कारा पर,<br>टूटे हुए सामान का तल, <br>भयानक गुफा, <br>टूटी कश्ती की <br>-तुम्हीँ मेँ तो सारी उडाने, सारी लडाइयाँ, इक्ट्ठा थीँ -<br>तुम्हीँ से उभरे थे <br><br> सारे गीत, <br>मधुर गीत गाते पँछीयो के पर <br>-एक दूरी की तरहा, <br>सब कुछ निगलता यथार्थ -- <br>दरिया की तरह ! <br>समुद्र की तरह ! <br>डूबता सबकुछसब कुछ, <br>तुम मेँ वह खुशी का पल, <br>आवेग और चुम्बन का ! <br>दीप - स्तँभ की भाँति प्रकाशित वह जादु - टोना !<br> उस वायुयान चालक की सी भीति, <br>वाहन चालक का अँधापन,<br>भँवर का आँदोलित नशा, प्यार भरा, <br>तुम्हीँ मेँ डूबता, सभी कुछ!-<br>शैशव के धूँधलके मेँ छिपी आत्मा, <br>टूते पँखोँ - सी ,<br>ओ छूट जानेवाले, <br>खोजनेवाला , है- खोया सा सब कुछ!<br> दुख की परिधि तुम -- <br>जिजिविषा तुम -- <br>दुख से स्तँभित - <br>तुम्हीँ मेँ डूब गया , <br>सब कुछ !<br><br>परछाइयोँकी परछाइयोँ की दीवारोँ को मैँने पीछे ठेला --<br>मेरी चाहतोँके चाहतोँ के आगे, <br>करनी के आगे, <br>और मैँ , चल पडा !<br>ओ जिस्म ! मेरा ही जिस्म ! <br>सनम! तुझे चाहा और, खो दिया -- <br>मेरा हुक्म है तुम्हे , <br>भीने लम्होँ मेँ आ जाओ , <br>मेरे गीत नवाजते हैँ -<br>बँद मर्तबानोँ मेँ <br>सहेजा हुआ प्यार <br>- तुम मेँ सँजोया था -- <br>और उस अकथ तबाही ने, <br>तुम्ही को चकनाचूर किया ! <br><br> वह स्याह घनघोर भयानकता, <br>ऐकाकीपन, <br>द्वीप की तरह -<br>और वहीँ तुम्हारी बाँहोँने बाँहोँ ने सनम, मुझे, आ घेरा --<br>वहाँ भूख और प्यास थी और तुम, <br>तृप्ति थीँ !दुख था और थे पीडा के भग्न अवशेष , <br>पर करिश्मा , तुम थीँ ! <br>ओ सजन! कैसे झेला था तुमने मुझे, कह दो <br>-- तुम्हारी आत्मा के मरुस्थल मेँ, <br>तुम्हारी बाँहोँ के घेरे मेँ -<br>मेरी चाहत का नशा, <br>कितना कम और घना था <br>कितना दारुण, कितना नशीला, <br>तीव्र और अनिमेष!<br><br> वो मेरे बोसोँ के शम्शान, <br>आग - अब भी बाकी है, <br>कब्र मेँ --फूलोँ से लगदे बाग, <br>अब भी जल रहे हैँ, <br>परवाज उन्हेँ नोँच रहे हैँ !<br>वह मिलन था -- तीव्रता का, <br>अरमानोँ का -जहाँ हम मिलते रहे ,\ <br>गमख्वार होते रहे -और वह पानी <br>और आटे सी महीन चाहत ,<br>वो होँठोँ पर, लफ्ज्` कुछ, फुसफुसाते गुए <br>-यही था, अहलो करम्, <br>यही मेरी चाहतोँ का सफर <br>-तुम्हीँ पे वीरान होती चाहत, <br>तुम्हीँ पे उजडी मुहब्बत !<br><br> टूटे हुए, असबाब का सीना, <br>तुम्हीँ मेँ सब कुछ दफन !<br>किस दर्द से तुनम नागँवारा, <br>किस दर्द से, नावाकिफ ?<br>किस दर्द के दरिया मेँ तुम, <br>डूबीँ न थीँ ? इस मौज से, उस माँझी तक, <br>तुम ने पुकारा , गीतोँ को सँवारा, <br>कश्ती के सीने पे सवार, नाखुदा की तरह <br>-- -- गुलोँ मेँ वह मुस्कुराना, <br>झरनोँ मेँ बिखर जाना, तुम्हारा,<br>उस टूटे हुए, सामान के ढेर के नीचे, खुले दारुण कुँएँ मेँ ! <br>रँगहीन, अँधे, गोताखोर,, कमनसीब, निशानेबाजभूले निशानेबाज भूले भटके, पथ - प्रदर्शक, <br>तुम्हीँ मेँ था सब कुछ, फना !<br><br> यात्रा की प्रस्थान बेला मेँ, <br>उस कठिन सर्द क्षण मेँ, <br>जिसे रात अपनी पाबँदीयोँ मेँ बाँध रखती हैसमँदर है<br>समँदर का खुला पट - <br>किनारोँ को हर ओर से घेरे हुएऔर हुए और रह जाती हैँ, परछाइयाँ <br>मेरी हथिलियोँ मेँ, कसमासाती हुईँ <br>--सब से दूर --- <br>सभी से दूर ---इस बिदाई के पल मेँ ! <br>आह ! मेरे, परित्यक्यत्त जीवन !!!