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उड़ा ले गई / ज्योत्स्ना शर्मा

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<poem>
61
हुई बावरी
सागर की बाँहों में
सिमटी, मिटी.
62
उड़ा ले गई
ख़ुशियों की पोटली
आँधी ईर्ष्या की।
63
झुके पहाड़
आँधी में रजकण
चढ़ते शीश।
64
नदी तट पे
अनगिन चिताएँ
ये भी उजाला!
65
चर्चा भी चली
गीत पर पवन के
झूमी जो कली।
66
जीवन-राह
जुगनू से चमके
तेरे दो नैन।
67
चम्पई शॉल
चल पड़ा बटोही
काँधे पर डाल।
68
अँधेरा डरा
इरादों ने पथ में
उजाला भरा
69
दिए तो जिए
उजालों की ख़ातिर
तुम्हारे लिए.
70
दिए तो जले
उजालों की चाहत
अँधेरे मिले।
</poem>