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दादी कहतीं नैन का तारा।
109
टिक-टिक करती चले घड़ी
कहीं न जाए वहीं खड़ी
अच्छी सबको लगे बड़ी।
1110
डोंगे में रसगुल्ले, बक्खर
ढक्कन से रखे थे ढककर
देखे जो चुपके से चखकर।
1211
हल्ला आज मचा है भारी
जाने होता कौन मदारी
वही नचाता है जो बन्दर।
1312
हैं कितने अचरज की बातें
कौन बनाता दिन और रातें
देता तारों की सौगातें।
1413
चारों ओर चुनावी चर्चे
माँ ! हम अपना फ़र्ज़ निभाएँ