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Kavita Kosh से
दादी कहतीं नैन का तारा।
टिक-टिक करती चले घड़ी
कहीं न जाए वहीं खड़ी
अच्छी सबको लगे बड़ी।
डोंगे में रसगुल्ले, बक्खर
ढक्कन से रखे थे ढककर
देखे जो चुपके से चखकर।
हल्ला आज मचा है भारी
जाने होता कौन मदारी
वही नचाता है जो बन्दर।
हैं कितने अचरज की बातें
कौन बनाता दिन और रातें
देता तारों की सौगातें।
चारों ओर चुनावी चर्चे
माँ ! हम अपना फ़र्ज़ निभाएँ