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बहुत कुछ नक्षत्रों के ज्ञान पर निर्भर करता है<br>
नक्षत्र हैं तो उनकी स्थिति बताने वाला ज्‍यातिष ज्‍योतिष शास्‍त्र है<br>ज्‍योतिष है तो उसे पढने पढ़ने समझने वाले ज्‍यातिषि ज्‍योतिषि हैं<br>
ज्‍योतिषि हैं तो उनकी दक्षिणा है और उस पर टिका <br>
उनका खाता पीता परिवार है<br>
मतलब कि नक्षत्रों की स्थिति पर निर्भर करता<br>
एक भरा पूरा सांसार संसार है<br><br>
नक्षत्रों को लेकर बहुत सावधान रहते थे पिता<br>
कभी यात्रा पर निकलते<br>
तो ज्‍योतिष ज्‍योतिषि से साइत जरूर निकलवाते<br>
उनकी अटूट श्रद्धा थी ज्‍योतिष के ज्ञान पर<br>
मजे मज़े की बात ये कि जब भी पिता <br>
यात्रा पर निकलने को होते <br>
तो उसी आस पास ज्‍योतिष <br>
बडी दुर्घटना हो जाती<br><br>
एक बार वृद्ध नाना जी की बीमारी की खबर ख़बर सुन<br>मायके जाने को बेचैन मां माँ के जाने की साइत निकालने को<br>
ज्‍योतिषि जी को बुलाया गया<br>
पर पूरब में जाने की आस पास कोई अच्‍दी अच्‍छी तिथि नहीं थी<br>
पर नाना जी की मौत शायद<br>
साइत के लिए नहीं रूकती<br>
सो ज्‍यादा ज़्यादा विरोध ना कर पिता ने मां माँ को जाने दिया<br><br>
आखिर नाना जी की मृत्‍यु हो गई<br>
और मां खुश माँ ख़ुश थी कि अगर वह ज्‍योतिषि जी के कहे अनुसार<br>विदा न होती तो नाना जी को आखिरी आख़िरी बार <br>
नहीं देख पाती<br>
पंडित जी का तर्क था कि अशुभ साइत में जाने से <br>
नाना जी असमय काल कवलित हो गए<br>
और पिता खुश थे ज्‍योतिषि जी के ज्ञान पर ।पर।
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