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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=एक उर्सुला होती है
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
संवाद तो
होता ही रहता है उससे
पर कुछ कहना रह जाता है बाकी
सो उसका नाम
पुकारना चाहता हूं
जोर जोर से
उससे यह सब कहूं
तो वह कहेगी
पागल
फिर खुश होउंगा मैं बेइंतहां
तब
कहेगी वह
सुधर जाइए अब भी
अच्छा नहीं यह।
</poem>
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|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=एक उर्सुला होती है
}}
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<poem>
संवाद तो
होता ही रहता है उससे
पर कुछ कहना रह जाता है बाकी
सो उसका नाम
पुकारना चाहता हूं
जोर जोर से
उससे यह सब कहूं
तो वह कहेगी
पागल
फिर खुश होउंगा मैं बेइंतहां
तब
कहेगी वह
सुधर जाइए अब भी
अच्छा नहीं यह।
</poem>