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Kavita Kosh से
इतने बड़े अध:पतन की ख़ुशी<br>
उन आंखों आँखों में देखी जा सकती है<br>
जो टंगी हुई हैं झरने पर<br>
गिरना और मरना भी नदी हो जाए<br>
जीवन फिर चल पड़े<br>
एक दिन मैं अपार समुद्र से उठता बादल होऊंगा<br>
बरसता पहाड़ों पर, मैदानों में<br>
तब मैं अपनी कोई ऊंचाई ऊँचाई पा सकूंगा<br>उजली गिरावट वाली दुर्लभ ऊंचाईऊँचाई<br><br>
कोई गिरना, गिरने को भी इतना उज्ज्वल बना दे<br>
जैसे झरना पानी को दूधिया बना देता है.है।